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लेखनी प्रतियोगिता - रात ऐसी भी??

क्या होगी एक रात ऐसी भी?


हो एक रात ऐसी भी,

जो चमक जाए सूरज की रोशनी से,

हो एक रात ऐसी भी,

जब निकलूं मैं बाहर, बिना परेशानी के,


चांद की चांदनी धूमिल सी पड़ जाती है,

जब मां जरूरत में भी,

बाहर जाने से मना कर देती है,


क्यों रात की कालिमा,

मेरे चरित्र से जुड़ जाती है?

क्यों धवल होकर भी चांदनी,

पवित्र नहीं बन पाती है?


हो एक रात ऐसी भी,

जब मैं भी गिन सकूं, तारे आसमान के,

महसूस कर सकूं मैं भी,

रात के अंधेरे में, सूरज के उजाले से।।


प्रियंका वर्मा
21/7/22

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8 Comments

Priyanka Verma

22-Jul-2022 08:05 AM

Thank you so much all my dear friends 🙏💐💐💐💐

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Abhinav ji

22-Jul-2022 07:32 AM

Nice

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Reyaan

21-Jul-2022 11:52 PM

बहुत खूब

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